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Patron's Message

प्रिय अभिभावको बंधु/भगिनी ,
सस्नेह नमस्कार
विद्यालय की नई विवरणिका आपके हाथ में है। यह विद्यालय का दर्पण है, भाषा है आप इसके माध्यम से विद्यालय की पुरी तस्वीर से अवगत होगे। शास्त्रों में कहा गया है।

येषां न विद्या तपो न दनाम
ज्ञानं न शीलं गुणे न धर्मः
ते मनर्यलोके भूमिभारभुता
मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति

विद्या से बालक बालिकाओं में विनय शीतला सच्चरित्रता एंव पात्रता की उपज होती है किन्तु विद्या में यदी संस्कार हो तो उसका महत्तव हजारो गुणा बढ जाता है।प्राचीनकाल में नालंदा तक्षशिला ,उज्जैन एंव विक्रमशिला विश्व विद्यालय में विश्व के कोने कोने से विद्यार्थी शिक्षा ग्रीण काने के लिये आते थे।वहॉं के शिक्षकों को आचार्य एंव शिक्षार्थियों को भैया बहन कहकर सम्बोधित किया जाता था।शिक्षार्थियों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ साथ वेद पाठ् संधि उपासना,हवन,मंत्र,गीता पाठ्, योग एंव संगीत की शिक्षा दी जाती थी।इसी को ध्यान में रख कर अपना यह विद्यालय भी शिक्ष के प्राचीन सथ्यता एंव संस्कृति को जीवंतता प्रदान कान ेका सफल प्रयास कर रहे है। इस विद्यालय में योग्य,अनुभवी एंव प्रतिभावान आचार्यो की सेवा ली जा रही है।इस विद्यालय की स्थापना 1994 में की गई है,जो झारखण्ड अधिविध परिषद् रॉची से मान्यता प्राप्त एंव आखिल भारतीय शिक्षा संस्थान विद्या भारती के सानिध्य में कार्यरत प्रांतीय समिति विद्या विकास समिति झारखण्ड से सम्बद्ध है।अपनंे इस विद्यलाय में भैया बहनों के पंचमुखी विकास शारीरिक,प्राणिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास के संस्कारयुक्त शिक्षा प्रदान कर सच्चरित्र,सुयोगय और राष्ट्रभक्त युवा पीढीका निर्माण करना हमारा उद्देश्य है।यह विद्यालय स्थापना काल से उत्कृष्ट परीक्षाफल परिणाम अर्जित कर जिले में ही नही प्रांत में भी अपना परचम लहरा रहा है।

संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिख हैः-

प्रातः काल उठी रधुनाथा
मात पिता गुरू नावहि माथा

अपने इस विद्यालय में प्राचीन सभ्यता संस्कृति तो जीवित है ही आधुनिक शिक्षण पद्धति भी क्रियाशील है।रामायण,महाभारत काल की व्यव्स्था का आचरण व आदर्या जीवित ही नहीं पुष्पित व पल्लवित भी हो रहा है।अंत में आप सम्मानित अभिभावकों की सहानुभूति एंव मार्गदर्शन की अपेक्षा के साथ...
धन्यवाद !

संरक्षक
डा0 विजय कुमार अग्रवाल
M.B.B.S., DLO